ज़िंदगी दौड़ नहीं है… तो फिर सब भाग क्यों रहे हैं?
हर सुबह जैसे ही आंख खुलती है, एक अनदेखी दौड़ शुरू हो जाती है।
जल्दी काम, जल्दी सफलता, जल्दी सब कुछ…
पर क्या कभी आपने सोचा है कि ज़िंदगी दौड़ नहीं है, फिर हम सब इतनी जल्दी में क्यों हैं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सिर्फ इसलिए भाग रहे हैं क्योंकि सब भाग रहे हैं?
क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि हम किसके लिए और क्यों इतनी जल्दी में हैं?
रेस किससे है? और किसलिए?
आज हर इंसान किसी न किसी अनदेखी रेस में दौड़ रहा है।
किसी को बड़ा घर चाहिए, किसी को कार, किसी को सोशल मीडिया पर फ़ॉलोअर्स।
पर ये सब पाने के बाद भी सुकून की तलाश जारी रहती है।
क्या ये हमारी रेस है? या हमें बस पीछे छूटने का डर है?
कभी-कभी हम वही चीज़ें पाने की दौड़ में होते हैं,
जिनकी हमें असल में ज़रूरत ही नहीं।
सबसे खतरनाक जहर
दूसरों की ज़िंदगी देखकर हम अपनी खुशियाँ नापने लगे हैं।
“उसकी शादी हो गई, मेरी कब?”
“वो विदेश घूम आया, मैं क्यों नहीं?”
“वो 30 में सेटल हो गया, मैं क्यों नहीं?”
तुलना की ये आग धीरे-धीरे हमारी खुशी और आत्मविश्वास दोनों जला देती है।
क्या वाकई हम जी रहे हैं?
हर दिन हम व्यस्त हैं – काम, फोन, ट्रैफिक, टार्गेट…
लेकिन क्या हम सच में जी रहे हैं,
या सिर्फ एक मशीन की तरह “करते जा रहे हैं”?
हम वो हँसी, वो सुकून, वो बेफिक्री कब खो बैठे —
जिसके लिए कभी ज़िंदगी हुआ करती थी?
धीरे चलने में भी ताक़त होती है
ज़िंदगी सिर्फ तेज़ भागने वालों की नहीं है।
धीरे चलना, रुककर सोचना, महसूस करना –
ये भी उतना ही ज़रूरी है।
हर फूल वक्त पर खिलता है, हर फल अपने मौसम में आता है।
आपका रास्ता भी खास है —
बस आपको अपने रफ्तार पर भरोसा करना है।
खुद से 3 सवाल पूछिए:
- क्या मैं खुश हूँ या सिर्फ व्यस्त?
- क्या मैं वो कर रहा हूँ जो मेरा है — या जो दुनिया करवा रही है?
- अगर सब कुछ बंद हो जाए, तो मैं खुद से खुश रहूंगा?
इन सवालों का जवाब अगर अंदर से “हां” नहीं है,
तो शायद अब वक्त है थोड़ी देर रुकने का।
ज़िंदगी कोई रेस नहीं —
ये एक यात्रा है,
जिसे अगर सुकून से, होश में, और खुद से जुड़े होकर जिया जाए —
तो हर मोड़ एक नई मुस्कान दे सकता है।
तो आज थोड़ी देर रुकिए, गहरी साँस लीजिए,
और खुद से कहिए — “मैं कहीं नहीं भाग रहा, मैं जी रहा हूँ।”